जीना तो बस अब... (Hindi Poetry)
A reflective poem that captures the awakening of self, choosing stillness over the rush, and beginning to truly live—just now.
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Written on: Jan 19, 2025

जी भर के इसे देख लेने दो।
इस रूप का दीदार कर लेने दो।

कोई जल्दी नहीं, कहीं पहुँचना नहीं,
जीना तो बस अभी शुरू ही किया है।

देखो तो ज़िंदगी यहाँ भी
भागी जा रही है, दौड़ती जा रही है।
पर मुझे कहीं नहीं जाना,
कुछ नहीं करना।

जीना तो बस अभी शुरू ही किया है।

क्यों जाना है कहीं?
क्यों करना है कुछ?

ये पैसों की ज़िंदगी तो बस उधार ही है।
इस अधूरी लाइफ़ से एक दिन खुद को बेल किया है।

जीना तो बस अभी अभी शुरू ही किया है।

सोचता हूँ, वो दूसरी ज़िंदगी क्या transactional है?
पैसा, घर, रुतबा — तो हम समय से ख़रीदते हैं।

आज के दिन मैंने समय से सुकून ख़रीदा है।
बस आज नहीं बेचना समय।
जीना तो अभी शुरू ही किया है।

खुद के अंदर देखो तो काफ़ी ख़ाली है।

प्यार, दोस्ती, ज्ञान, अनुभव — कुछ ज़्यादा नहीं है।
पैसों के लिए ये सारी चीज़ें हमने boycott किया है।

पर आज नहीं, आज जीना तो अभी शुरू ही किया है।

आज लगता है कि ग़लत दिशा में चल रहा था मैं,
सही ओर तो अब चलना शुरू ही किया है।

अब देखना है कितनी दूर खुद के लिए चल सकता हूँ,
क्योंकि सही मायने में जीना तो अब शुरू ही किया है।

पैसों, रुतबे, luxury में contentment नहीं मिलती।
जिस चीज़ ने content किया, उसमें कभी ध्यान नहीं दिया।

अब बस उस contentment का अनुभव ढूँढना शुरू ही किया है।

मत आवाज़ दो मुझे, जीना तो अभी शुरू ही किया है।
जीना तो अब शुरू ही किया है।


Last modified on 2025-01-19