Written on: Nov 1, 2013
अपने ही मन के दरवाज़े पर मैनें knock कर के पूछा
मैं हूँ या ना हूँ?
जब उँचे पहाड़ो को देखता हूँ
उसके एक पत्थर से भी खुद को कमज़ोर पाता हूँ
तो खुद से ये पूछता हूँ
इस पर्वत के सामने मैं कुछ हूँ या ना हूँ?
मैं हूँ या ना हूँ?
समंदर के बीच में तैरता मैं
कुछ दूर तैर के ठहरता मैं
सोचता हूँ कि इस बड़े से समंदर में
इसकी एक लहर से भी कमज़ोर मैं कुछ हूँ या ना हूँ?
मैं हूँ या ना हूँ?
Flight में travel करते करते
जब देखता हूँ नीचे डरते डरते
इंसान और insects के बीच का फ़र्क भूल जाता हूँ
सोचता हूँ इस बड़े से आसमान में मैं कुछ हूँ भी या ना हूँ?
मैं हूँ या ना हूँ?
मन ने दरवाज़ा खोला और बोला
अंदर आजा मेरे भोला!
हटा सावन की घटा!
आँखे बंद कर और सोच के बता!
क्या होता है तुझे महसूस?
तबतक मैं तेरे लिए बनता हूँ juice!
मैने हाथो को संग किया
और आँखो को बंद किया…
थोड़ी देर में खुद की ही साँस सुनाई देने लगी
और फिर धड़कन भी rythemic beat देने लगी
बंद आँखो के सामने ही कुछ धुँधला दिखाई देने लगा
और background में मन की आवाज़ सुनाई देने लगा
तुझे तेरे कमज़ोर होने का क्यूँ गम है?
तेरी धड़कन चल रही है ये क्या कम है?
तेरे हाथ में दूसरे हाथ का एहसास है
तेरी सांसो में तेरे होने का एहसास है
तेरी धड़कन में ज़िंदगी का एहसास है
और तू हर तरह से ख़ास है!
ये होने ना होने के puzzle में मत पड़ !
कुछ दूर आगे चल.. कुछ दूर आगे बढ़
अपने दिल की सुन, अपने दिल की कर
ज़िंदगी वाह-वाह कर उठे ऐसा कुछ कर
फिर ज़िंदगी से पूछना की तू है या ना है!
और ज़िंदगी कहेगी… तू है तभी तो ज़िंदगी है!
तू है तो ज़िंदगी है!
Last modified on 2013-11-01